23 अगस्त 2023 को  सॉफ्ट लैंडिंग करेगा chandrayaan-3

23 अगस्त 2023 को  सॉफ्ट लैंडिंग करेगा chandrayaan-3

*14 जुलाई को भारतीय स्पेस एजेंसी ISRO ने अपना चंद्रयान 3 को लांच किया ।

*23 अगस्त को यह साउथ पोल में  लैंड करेगा ।

*इस मिशन को लॉन्च करने के तीन लक्ष्य है।

**चांद चंद्रमा की सरफेस पर सॉफ्ट लैंडिंग।

**सरफेस पर रोवर को चला कर दिखाना।

**वहां पर उपस्थित तत्वों की साइंटिफिक जांच करना।

(चंद्रयान– 1) जो 22 अक्टूबर 2008 को भारत ने चंद्रमा पर अपना पहला मिशन लॉन्च किया।

इसका मकसद था भारत की स्पेस टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन करना और खनिज तत्वों के बारे में और चांद की भौगोलिक स्थिति का पता लगाना था ।

(चंद्रयान 2) इसरो ने लांच किया जिसका मकसद था चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करवाना लेकिन अचानक से लेंडर से कम्युनिकेशन टूट गया और वह गायब हो गया था।

अब chandrayaan-3 को लॉन्च किया है। जिसकी खबर हम आप तक पहुंचाते रहते हैं।

**आखिर चांद पर पहुंचने की होड़ क्यों लगी हुई है? –

  1. संभावना है कि यहां पानी है।

यह आशंका है कि चंद्रमा की साउथ पोल में पानी हो सकता है। और पानी को ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में ब्रेकडाउन कर सकते हैं। और हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को मिलाकर एक शक्तिशाली  ईधंन बनाया जा सकता है। जिस से मंगल ग्रह पर जाने वाले स्पेसक्राफ्ट रुक कर चंद्रमा से फ्यूल ले सकते हैं। पानी की मौजूदगी वहां पर जीवन को उत्पन्न कर सकती है और वहां खेती भी कारगर हो सकती है।

  1. कीमती धातु की उपस्थिति हो सकती है?

चांद की सतह के नीचे कौनसी-कौनसी धातुएं हो सकती है आइए हम बताते हैं आपको–

सोना, प्लैटिनम, टाइटेनियम ,यूरेनियम इस प्रकार की बहुमूल्य धातुएं हो सकती है।

चांद पर नॉन रेडियोएक्टिव हिलियम गैस की  मात्रा भी बहुत अधिक है।

  1. चांद एक प्रकार का रुकने का अड्डा है?

आप मंगल ग्रह पर कोई भी रास्ते से जाना चाहे लेकिन आपको चांद सी होकर जाना पड़ेगा। चंद्रमा की पृथ्वी से कम दूरी होने की वजह से यहां से कनेक्शन बनाए जाना बहुत आसान है। और मिशन को आसानी से लांच किया जा सकता है। चांद की अन्य ग्रहों की तुलना में पृथ्वी से कम दूरी है।

*आने वाले भविष्य में चांद को एक स्टेशन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जिससे अन्य ग्रहों से दूरी तय करने में आसानी होगी ।

  1. भू राजनीतिक संभावना?

चांद पर जाने की सब देशों के बीच में होड़ लगी हुई है इसका में मकसद भू राजनीतिक  संभावना हो सकती है। और इन लोगों के बीच में यह प्रतिस्पर्धा है कि कौन सा देश स्पेस टेक्नोलॉजी में सबसे आगे है। और इस रेस में चीन अमेरिका से पीछे नहीं रह सकता और इसी होड़ में भारत और रूस भी लगे हुए हैं।

**आइए अब हम आपको बताते हैं अंतरिक्ष में जाने के नियम महत्वपूर्ण—

१.संयुक्त राष्ट्र के आउटर स्पेस के 1967 के समझौते के अनुसार अंतरिक्ष में कि किसी भी जगह पर कोई भी देश अपना दावा नहीं कर सकता है।

२. संयुक्त राष्ट्र में हुआ 1979 में समझौते के अनुसार  अंतरिक्ष का कमर्शियल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। हालांकि चीन रूस और अमेरिका ने इस समझौते पर सिग्नेचर नहीं किये।

“अपने आर्टेमिस अकॉर्ड को अमेरिका लगातार बढ़ावा दे रहा है”  –

 जिसके मुताबिक अलग-अलग देश चांद के रिसोर्सेज का इस्तेमाल कर सकते ।

हालांकि चीन और रूस ने इस समझौते पर सिग्नेचर नहीं किया क्योंकि उनका कहना है कि अमेरिका के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है जो अंतरिक्ष के नियमों को बना सके।

इससे पता लग रहा है कि अंतरिक्ष के लिए बहुत सारे नियमों का निर्माण किया गया है लेकिन बहुत सारी देश की मनमर्जी पावर्स ने इसका पालन नहीं किया क्योंकि उन सबको पता है जो सबसेपहले अंतरिक्ष पर जा पाएगा उसका ही अंतरिक्ष पर सबसे पहले दबदबा होगा और वह अपनी पावर को बरकरार रख पाएगा और टेक्नोलॉजी की दुनिया में सबसे पहले अपने देश का झंडा फहरा पाएगा chandrayaan-3

 

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